Bhole dada ji part 1


                     भोले दादा जी 

घना अंधेरा था. मूसलाधार बारिश हो रही थी. तेज हवा चल रही थी. पेङो के पत्ते ऐसे बज रहे थे, जैसे कोई गिटार बजा रबा हो. ऐसे घोर अंधेरे में भी चमक रही थी. ये शानदार हवेली जिसके मुखिया थे अरविंद वधावन। उनके पुत्र जानें माने उद्योगपति अविनाश वधावन कुर्सी पर बैठे अखबार पढ रहे थे. उनका पोता मास्टर

विनय सोफे में दुबका कॉमिक्स पढ़ रहा है तभी द्वार पर दस्तक हुई


द्वार पर  : ठक-ठक ठाक -ठाक ठक -ठक 


अविनाश वधावन : कौन है द्वार पर. बेटा देख तो. 


विनय : नहीं पापा  मैं कॉमिक्स पढ़ रहा हूँ. 


वह स्वयं ही दरवाजा खोलने के लिए उठे 



विनय(चीखकर) : नहीं पापा दरवाजा मत खोलना 


अविनाश : क्यों बेटा 

विनय : बाहर एरिअल हो सकता है 

अविनाश : एरिअल नहीं बेटा *एलियन होता है.

विनय : नहीं पाप एलियन नाम पुराना  हो चूका है ,इसलिए एरिअल ही होता है.

विनय से बहस में जितना तो एलियन के लिए भी मुश्किल है. 

अविनाश : अच्छा ठीक है एरिअल ही सही पर दरवाजे पर एलियन सॉरी एरिअल कैसे आ सकता है, यह


 सब तो कॉमिक्स मैं ही  होता है. 

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अविनाश 
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मास्टर विनय
विनय : पापा कुछ भी हो दरवाजा मत खोलना

अविनाश : मगर बेटा

विनय  : मगर-वगर कुछ नहीं, पापा

अविनाश : - मगर दरवाजा तो खुला है

विनय (चौंककर) :- क्या? दरवाजा खुला  है, फिर कौन बेवकूफ खुला दरवाजा बजा रहा है 

अविनाश :- ये  तो मैं भी सोच रहा हूं , बेटा




द्वार पर कौन था फिर क्या हुआ 
आगे क्या हुआ जानने के लिए पढ़िए इस कहानी का नेक्स्ट पार्ट 
आप धीरे धीरे बड़े चाव से ये कहानी पढ़ते रहें,इसमें कई रोचक मोड़ आएंगे, मेरा दावा  है की इस कहानी को शुरू करने के बाद आप इसे बिच में कदापि छोड़ना चाहेंगे 
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